Sunday, August 8, 2010

स्त्रियों के पक्ष में है साक्षात्कार -निर्मला जैन

इस पूरे प्रकरण पर मुझे इस बात का बेहद खेद है कि अधिकांश लोग इस इंटरव्यू को बिना पढ़े विवाद का विषय बना रहे हैं और इसे नारेबाजी का एक रूप दे दिया है। इसमें आपत्तिजनक यह है कि इसमें 'नया ज्ञानेदय' पत्रिका के संपादकीय विभाग की लापरवाही या कहें कि संपादकीय गैर-जिम्मेदारी दिखती है।



मैने इस इंटरव्यू को पूरा पढ़ा है। इसे पढ़ने के बाद यह बात साफ हो जाती है कि यह महिलाओं के पक्ष में है। यह मैं इसलिए कह रही हूं कि जो लेखक और संपादक स्त्री विमर्श के नाम पर देह विमर्श को सामने ला रहे हैं, इस इंटरव्यू में उनका विरोध किया गया है। विभूति नारायण राय ने इस इंटरव्यू में साफ कहा है कि देह की स्वतंत्रता का नारा देकर कुछ लेखक और संपादक स्त्री विमर्श को मुख्य मुद्दे से भटका रहे हैं। इस संदर्भ में उन्होने ' हंस ' के संपादक राजेंद्र यादव की कटु आलोचना की है और दूधनाथ सिंह की ' नमोअंधकारम ' कहानी को स्त्री विरोधी बताया है। उन्होने यह भी कहा है कि देह विमर्श करने वाली स्त्रियां भी स्त्री विमर्श को शरीर से केंद्रित कर रचनात्मकता को बाधित कर रही हैं।इस इंटरव्यू में विभूति नारायण राय ने पितृसत्तात्मक समाज का भी विरोध किया है। उनका ये भी कहना है कि स्त्री विमर्श आज देह विमर्श तक सिमट कर रह गया है और इसके कारण दूसरे मुद्दे हाशिए पर चले गए हैं।



अब रही बात जिस बात पर बवेला मचा हुआ है, तो इसकी जांच होनी चाहिए कि इसके लिए विभूति नारायण जिम्मेदार हैं या ' नया ज्ञानोदय ' के संपादकीय विभाग की लापरवाही की वजह से यह सब हो रहा है।



मेरा मानना है कि एक पंक्ति को निकालकर जिस तरह वितंडा खड़ा किया जा रहा है, उससे इस समस्या का समाधान नहीं निकलेगा बल्कि इस गंभीर प्रश्न को सतही ढंग से देखने का खतरा पैदा होगा। हमें जवाब इस बात का देना है कि क्या स्त्री विमर्श सिर्फ देह की स्वतंत्रता है? मेरी राय में उसका दायरा कहीं व्यापक और गंभीर है।



लेखिका वरिष्ठ साहित्य आलोचक हैं।

1 comment:

  1. "क्या स्त्री विमर्श सिर्फ देह की स्वतंत्रता है?"

    नहीं, केवल यही नहीं है, स्त्रियों के अस्तित्व से जुड़े कई और मुद्दे हैं, जो विमर्श के केंद्र में आने चाहिएँ. देह की स्वतंत्रता भी सार्थक होनी चाहिए. देह स्त्री की है, वो जैसे चाहे उसे उन्मुक्त करे, हम उपदेश देने वाले कौन हुए? मगर कुछ औचित्य भी हो.ताकि घूम-फिरकर वह फिर उसी पुरुष के हाथ की कठपुतली और भोग्या मात्र ना राह जाय, जिस से उसने मुक्ति तलाशी थी.

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